गोलू के घर में एक शरारती चूहा आ गया। वह बहुत छोटा सा था मगर सारे घर में भागा चलता था। उसने गोलू की किताब भी कुतर डाली थी। कुछ कपड़े भी कुतर दिए थे। गोलू की मम्मी जो खाना बनाती और बिना ढके रख देती , वह चूहा उसे भी चट कर जाता था। चूहा खा – पीकर बड़ा हो गया था। एक दिन गोलू की मम्मी ने एक बोतल में शरबत बनाकर रखा। शरारती चूहे की नज़र बोतल पर पड़ गयी। चूहा कई तरकीब लगाकर थक गया था, उसने शरबत पीना था।
उस दिन बड़े सवेरे जब श्यामू की नींद खुली तब उसने देखा—घर भर में कुहराम मचा हुआ है। उसकी काकी उमा एक कंबल पर नीचे से ऊपर तक एक कपड़ा ओढ़े हुए भूमि-शयन कर रही हैं, और घर के सब लोग उसे घेरकर बड़े करुण स्वर में विलाप कर रहे हैं। लोग जब उमा को श्मशान सियारामशरण गुप्त
भावी और मूर्ति को उनके अंतिम संस्कार के लिए ले जाया गया, जब मूर्ति अचानक उठे और चिल्लाए “मैं दो लड्डू से खुश हूं।” बाद में उन्होंने पूरी कहानी ग्रामीणों को बताई। तभी से मूर्ति को गांव में “लड्डू भिखारी” नाम दिया गया।
असम विधानसभा में जुमे की नमाज़ का ब्रेक ख़त्म करने पर हंगामा, हिमंत बिस्वा सरमा पर जेडीयू हमलावर
उन दिनों मैं बी.ए. फाइनल इयर में थी। मम्मी, पापा को छोड़कर वेदांत अंकल के साथ ही रहने लगी थी। महीने-दो-महीने में वह इधर का एक चक्कर लगाती और मुझसे मिलकर चली जाती। जहां तक मैं जानती थी, मम्मी-पापा में अलगाव का कारण सेक्स ही था
घर आकर मां को मक्खियों के बारे में बताया। वह हमारे खाने को गंदा कर देती है। घर में आकर गंदगी फैल आती है। इसे घर से बाहर भगाना चाहिए।
काफी देर भटकने के बाद उसे जोर से भूख click here और प्यास लगी।
उसी हिंदी के सामने 'उसने कहा था' की वो हिंदी जो आज भी इसलिए ताज़ा और समकालीन लगती है क्योंकि वो एक ओर तो जीवित-व्यावहारिक भाषा को रचना का आधार बनाती है और दूसरी ओर वो इस भाषा की व्यंजनाओं को विरल विलक्षण आँख से पकड़ती है.
गत वर्ष जब प्रयाग में प्लेग घुसा और प्रतिदिन सैकड़ों ग़रीब और अनेक महाजन, ज़मींदार, वकील, मुख़्तार के घरों के प्राणी मरने लगे तो लोग घर छोड़कर भागने लगे। यहाँ तक कि कई डॉक्टर भी दूसरे शहरों को चले गए। एक मुहल्ले में ठाकुर विभवसिंह नामी एक बड़े ज़मींदार मास्टर भगवानदास
(मेरी मान्यता है कि मंटो को उर्दू-हिंदी के भाषाई विभाजन का विषय न बनाया जाए. वे दोनों ही भाषाओं के महान कथाकार हैं. उनकी सहज-सरल भाषा को किसी ऐसी श्रेणी में बांटा भी नहीं जा सकता. जो भी अंतर है वह सिर्फ़ लिपि की भिन्नता के कारण है.
ऐसी 'हिंदी', जो आज के अकादमिक, सांस्थानिक और राजकीय-राजनीतिक प्रयासों से अपठनीय बना दी गई है और जो साधारण हिंदी भाषियों के लिए दुरुह और अजनबी हो चुकी है.
इन्दुमती अपने बूढ़े पिता के साथ विंध्याचल के घने जंगल में रहती थी। जबसे उसके पिता वहाँ पर कुटी बनाकर रहने लगे, तब से वह बराबर उन्हीं के साथ रही; न जंगल के बाहर निकली, न किसी दूसरे का मुँह देख सकी। उसकी अवस्था चार-पाँच वर्ष की थी जबकि उसकी माता का परलोकवास किशोरीलाल गोस्वामी
बाबा भारती और खड़ग सिंह की यह कहानी मनुष्य के भीतर छिपी अच्छाइयों के पुनरुद्धार और दूसरे मनुष्य पर विश्वास की अनश्वरता की अद्भुत लोकगाथात्मक कहानी है.
एक दिन शेरू को राहुल ने एक रोटी ला कर दिया।